. महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है और क्या हुआ था इस दिन ? पढ़े पूरी कहानी - Sab Achha

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है और क्या हुआ था इस दिन ? पढ़े पूरी कहानी

हेलो दोस्तो , आज फिर आपका हमारे सब अच्छा .कोम में स्वागत है । आज हममहाशिवरात्रि  क्यों मनाई जाती है ? या तो  why we celebrate Maha Shivratri ?  के बारे में बताने वाले है । इस साल महाशिवरात्रि 13 february 2018 को मंगलवार है ।  शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है । इस दिन शिव भक्त उपवास रखते है और  पंचाक्षरी मंत का जाप करते है ।
महाशिवरात्रि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ये माना जाता है कि एक साल में 12 शिवरात्रिया  होती है । इसमे प्रत्येक हिन्दू माह का जो अंतिम दिवस होता है यानी कि कृष्ण चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है । माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में पूरे भारत मे  मनाया जाता है । इसके दूसरे दिन से हिन्दू माह का अंतिम माह फाल्गुन शुरू होता है । 

फाल्गुन माह महीने के कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि क्यों मनाया जाता है तो ऐसा मनना है कि इस दिन शिव पार्वती का विवाह सम्पन हुआ था और इस दिन प्रथम शिवलिंग की प्रागट्य हुआ था  ओर सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था ।

ऐसा माना जाता है कि  सांसारिक समस्या की मुक्ति सिर्फ भगवान शिव ही  दिला सकते है । इस कारण  प्रत्येक हिन्दू माह के मानते है  भगवान  शिव की पुजा करके जाने अनजाने में किये हुए पाप की क्षमा मांग सकते है  ।महाशिवरात्रि वर्ष के अंत मे आती है इसलिये इसको माह शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है ।

कथाए
महाशिवरात्रि के संबंधित कई पौराणिक कथाएं है ।

(1)  समुद्र मंथन 
इस दिन भगवान शिव ने कलुकाट नामक विष को  अपने गले ( कंठ) में रख लिया था । जो समद्र मंथन के दौरान बाहर आया था ।

(2) शिकारी कथा
एक बार को पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्र पूछा की " ऐसा कोनसा सरल और श्रेठ व्रत - पूजन है जिसमे मृत्यु लोक यानि की पृथ्वी के लोग सहज पूजा से प्राप्त कर सकते है ? " पावर्ती के प्रश्न का उत्तर देते हुये भगवान शिव ने ये कहा की महा शिवरात्रि और ये कथा सुनना सुरु कर दिया।

एक शिकारी था जिसका नाम चित्रभानु था।  वह पशुओकी  हत्या करके अपने कुटुंब का पालन करता था।  साहूकार से कुछ ऋण लिया था इसलिए वो  चित्रभानु शिकारी साहूकार का ऋणी था लेकिन साहूकार का ऋण चित्रभानु पूरा ना कर सका।  इसलिए साहूकार ने चित्रभानु को शिवमठ  में कैद कर दिया। संयोग से उस दिन शिव रात्रि थी।   

शिकारी शिव से जुड़े धार्मिक बाते सुनने लगा और साथ  ही साथ शिवरात्रि व्रत की कथा सुनी। शाम होते ही साहूकार ने वहा आकर ऋण चुकाने की बात की। शिकारी ने अपना ऋण चुकाने का वचन देकर छूट गया । वह  दिनचर्या के अनुसार जंगल में शिकार करने चला गया लेकिन सुबह से वह कैद था  और कुछ खाया -पिया ना  वजह से वह बहुत व्याकुल था।  शिकारी बेल - वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल -वृक्ष नीचे शिवलिंग था  बेल  पत्तो से ढका हुआ था इसलिए शिकारी को पता नहीं चला। 

वह पड़ाव बनाते  समय बेल वृक्ष की टहनिया तोड़ रहा था उस वक्त बेल -पत्ते गिर कर शिवलिंग पर पड़ रहे थे और पुरे भूखे -प्यासे रहने की वजह  से व्रत पूर्ण हो गया और  शिवलिंग पर बेल-पत्र भी चढ़ गए। तब रात हो चुकी थी और वहा गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पिने आती है।  

शिकारी धनुष पर तीर चढ़ाकर मारने के तैयारी कर ही रहा था । तब मुर्गी बोली " में गर्भिणी हु और शीघ्र ही बच्चे को पैदा करने वाली हु। तुम एक साथ दो जीवो की हत्या करोगे जो ठीक नही है । में बच्चे को जन्म देने के बाद तुम्हारे सामने आउंगी तब मार देना । " शिकारी ने धनुष पर से तीर नीचे रख दिया और मुर्गी जादियो में लुप्त हो गई ।

कुछ देर बाद फिर से एक मुर्गी वहा से निकली ।अब शिकारी की खुशी का ठिकाना नही रहा । जैसे ही मुर्गी शिकारी के करीब आयी मुर्गी ने शिकारी को देख लिया और बोली में अपने प्रिय की खोज में हु । में अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आउंगी । दो बार शिकार हाथ से जाने पर शिकारी काफी ना खुश था । तभी वहां से एक मुर्गी अपने बच्चे के साथ जा रही थीं । शिकारी ने उसे मारने के तय कर लिया। लेकिन इस  बार भी मुर्गी बोली कि में अपने बच्चो को उनके पिता को मिलाकर आपके पास आउंगी तब मुझे मार देना । शिकारी को उसके ऊपर दया आयी और उसे भी जाने दिया ।

तब वहा पर एक मुर्गा आया । शिकारी ने तय कर लिया कि वो उस मुर्गे को जरूर मरेगा । जैसे ही शिकारी ने मुर्गी को मारने के लिए घनुष पर तीर चढ़ाया मुर्गा बोला " अगर तुमने मेरे से पूर्व आने वाले 3 मुर्गी को मार दिया है तो मुजे मारने पर विलंब ना करे । क्यू की वो तीन मुर्गियो मेरी पत्निया थी। अगर तुमने उसे  नही मार हौ तो मुजे भी  कुछ क्षणों का जीवन दान दे दे ताकि में अपनी तीन पत्नियो के साथ तुम्हारे साथ उपस्थित होऊंगा ।एसा बोल के मुर्गा वहा से चला गया ।

उपवास रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ने के बाद उसका हदय हिंशाक से निर्मल हो गया । 

थोड़ी देर बाद मुर्गा अपने परिवार  के साथ वहां आया , ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके । लेकिन  पशुओ की ऐसी सत्यता ,  सात्वतिक्ता देखकर  शिकरी  का हदय परिवर्त्तन ही गया । उसने मुर्गे के परिवार को ना मारकर  अपने कठोर हदय को सदा के लिए कोमल और दयावान बना दिया ।  देव लोग के समस्त देव ये घटना क्रम देख रहे  थे ।  धटना की परिणीति होते देवी देवताओ ने  पुष्प वर्षा की और शिकारी और मुर्गा  के परिवार को मोक्ष प्राप्त हुए। 

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